Friday 25 December 2009

Another poetic response

Before also others' poems have inspired me to write. This one written few months back, may be out of context especially for those who were not part of discussions at wee hours. If you happen to read, try and read in the sequence. All three are strongly interlinked.

One - The original (seed)
Two - The response
Three - The re-response:

नया चाँद हर महिने आता रहेगा
हँसता गाता रहेगा, मुस्कुराता रहेगा
चाँद से ज्यादा चंचल तो हम ही हैं,
जानते हैं कि हर नया चाँद गुमनाम होता रहेगा |

फिर भी हम आस लगाए बैठते हैं कि वह हर रात सजाएगा
चुरा के ही सही, इतनी रौशनी भला वह भी कहाँ से लाएगा?
फिर अमावस पे वह नही आता, टूटते हमारे दिल
तब याद आते हैं तारे, आज फिर दिखते झिलमिल |

चाँद या तारे, दोनों के बिना अधूरी ही लगती है रात
अंतर बस यह कि हम ही हैं देखते चाँद को अरमानों के साथ
तारों के साथ हम अरमानों के कोई बंधन नहीं रखते
इसी लिए लगते हैं वो अपने, हो पाती है उनसे दिल की बात |

~~~ ~~~ ~~~ ~~~ ~~~ ~~~ ~~~ ~~~

सब तारों में एक, कोने में अकेला बैठा रहता है
लोग पाते उसको अचल, उत्तर दिशा दिखाता है
पर लोग क्या जाने, हाय! कैसी चक्कर आती है...
एक दो ही नहीं, पूरी दुनिया जो मंडराती है |

पूनम पे तो मुरझाता है, जलता है चाँद से थोडा सा
और अमावस पे तुम्हे गुमसुम देख, होता है मायूस सा
लेकिन उस ध्रुव ने भी ठानी है ध्रुव तारा बने रहने की
अमावस की रात जब चाँद न हो साथ, लोगों का साथ देने की |

उसके भी दिल की सुनने वाली होगी कोई परी
कफनी वाले जोगी का दिल हुआ है भारी
तड़प रहा है वो भी ऐसे ही किसी के साथ के लिए
किसी के नही, शायद उसी एक हाथ के लिए |

- कार्तिक
९ अप्रैल २००९

3 comments:

Anand Gautam said...

Yeeeeeeee!
Kartik is also here :)
Awefome :)

Sandeep Chauhan said...

nice poem.......especially the last stanza is Awefome :)

Unknown said...

thank you!